भाषा एवं साहित्य >> वैश्विक रचनाकार: कुछ जिज्ञासाएँ वैश्विक रचनाकार: कुछ जिज्ञासाएँसुधा ओम ढींगरा
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इक्कीसवीं सदी के विश्व के हिन्दी साहित्यकारों के साथ साक्षात्कार
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
संवादधर्मिता साक्षात्कार का सौंदर्य है
साक्षात्कार अत्यंत लोकप्रिय और उपयोगी विधा है । पाठक यह अनुभव करता है जैसे वह किसी रचनाकार के सामने बैठकर उससे बातें कर रहा है । उपयोगी इसलिए कि इसमें रचनाकार के ’अंत: साक्ष्य’ मिलते हैं । इन साक्ष्यों से रचना संसार को समझने में मदद मिलती है । विद्वान् आदि विधा के नाम पर कहानी या कविता का नाम लेते रहते हैं । मुझे लगने लगा है कि संवाद ही साहित्य की आदि विधा है । कोई भी प्राणी सबसे पहले अपने अकेलेपन को समाप्त करना चाहता है । गालिब जब कहते हैं- ’रहिये अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो, हमसुखन कोई न हो और हमज़बाँ कोई न हो’ तो उनकी त्रासदी समझी जा सकती है । यह असामान्य मनोदशा है । सामान्य स्थिति यह है कि मनुष्य किसी की बात सुनना चाहता है, किसी से कुछ कहना चाहता है । संवाद सभ्यता और संस्कृति का बीज रूप है । इस संवाद और साक्षात्कार ने न जाने कितने रूप बदले हैं, जाने कितने नामों से स्वयं को व्यक्त किया है । आधुनिक साहित्य में साक्षात्कार को एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । बातचीत, संवाद, आमने सामने या कुछ और नामों से साक्षात्कार पत्र पत्रिकाओं में छपते हैं.. खूब पड़े जाते हैं ।
कुछ पत्रकारों और लेखकों ने साक्षात्कार लेने की कला को एक रचनात्मक हुनर बना लिया है । उन्हें पता है कि किस लेखक से बात करने का सलीका क्या है । संवाद एक सलीका ही तो है । साक्षात्कार का सौन्दर्य है संवादधर्मी होना । .. ऐसी अनेक विशेषताएँ सुधा ओम ढींगरा द्वारा लिये गये साक्षात्कारों में सहज रूप से उपलब्ध हैं । ’वैश्विक रचनाकार: कुछ मूलभूत जिज्ञासाएँ’ में मौजूद साक्षात्कार इस विधा की गरिमा को समृद्ध करते हैं । समर्पित रचनाकार सुधा ओम ढींगरा बातचीत करने में दक्ष हैं । वैसे भी जब वे फोन करती हैं तो अपनी मधुर आवाज़ से वातावरण सरस बना देती हैं । जीवन्तता साक्षात्कार लेने वाले का सबसे बड़ा गुण है । बातचीत को किसी फाइल की तरह निपटा देने से मामला बनता नहीं । सुधा जी को इस विधा में दिलचस्पी है । उन्होंने अनुभव और अध्ययन से इसे विकसित किया है । वे ऐसी लेखक हैं, जिन्हें टेक्नॉलॉजी का महत्त्व पता है । बातचीत करने के लिये आमने सामने होने के अतिरिक्त उन्होंने फोन, ऑनलाइन और स्काइप का उपयोग किया है । बल्कि आमना-सामना अत्यल्प है । इससे कई बार औपचारिक या किताबी होने का संकट रहता है जो स्वाभाविक है ।... लेकिन यह देखकर प्रसन्नता होती है कि सारे साक्षात्कार जीवन्त और दिलचस्प हैं ।
अमेरिका, कैनेडा, इंग्लैण्ड, आबूधाबी, शारजाह, डेनमार्क और नार्वे के साहित्यकारों से सुधा जी के प्रश्न सतर्क हैं । साहित्यकारों ने भी सटीक उत्तर दिये हैं । यह पुस्तक पाठकों की ज्ञानवृद्धि के साथ उनकी संवेदना का दायरा भी व्यापक करेगी । वैश्विक रचनाशीलता की मानसिकता को यहाँ लक्षित किया जा सकता है । ऐसी पुस्तकें हिन्दी में बहुत कम हैं । शायद न के बराबर । विश्व के अनेक देशों में सक्रिय हिन्दी रचनाकारों के विचार पाठकों तक पहुँचाने के लिए हमें सुधा ओम ढींगरा को धन्यवाद भी देना चाहिए । हिन्दी में कुछ विशेषज्ञ रहे हैं जो साक्षात्कार को रचना बना देते हैं । सुधा जी को देखकर.... उनके काम को पढ़कर और इस विधा के विषय में उनके विचार जानकर उनकी विशेषज्ञता की सराहना की जानी चाहिए ।
इस पुस्तक के लिए श्रेष्ठ रचनाकार और संवेदनशील संवादिया सुधा ओम ढींगरा को बहुत-बहुत बनाई । शुभकामनाएँ । यह भरोसा है कि वे अपनी इस यात्रा को अनुद्घाटित दिशाओं में ले जाएँगी । अनुज पंकज सुबीर का कृतज्ञ हूँ कि उन्होंने इस पुस्तक को पढ्ने और इस पर कुछ लिखने का अवसर दिया । ’वैश्विक रचनाकार : कुछ मूलभूत जिज्ञासाएँ’ को पढ़कर प्रवासी लेखन कह कर अनेक लेखकों को हाशिए पर ढकेलने की प्रवृत्ति भी कम होगी ।
-सुशील सिद्धार्थ
सम्पादक
राजकमल प्रकाशन
१ बी, नेताजी सुभाष मार्ग
दरियागंज - 2
मोबाड़ल ०९८६८०७६१८२
ईमेल : Sushilsiddharth@gmail.com
कुछ दिल ने कहा
साक्षात्कार विधा से मेरा नाता बहुत पुराना है । पत्रकारिता जगत् में प्रवेश करते ही मेरा परिचय इस विधा से हुआ । दैनिक पंजाब केसरी के मुख्य संपादक श्री विजय चोपड़ा जी ने पहला कार्यभार मुझे पिंगला घर के संचालक का इंटरव्यू लेना और फिर पिंगला घर पर फीचर लिखना, सम्भाला था । एक अनाड़ी किशोरी को पत्रकारिता के समुद्र में अनुभवों के गोते लगाने के लिए उतार दिया था और स्वयं प्रोत्साहन तथा संबल का छाता तान कर बारिश, धूप और छाया से बचाने के लिए साथ खड़े रहे । वे एक बहुत अनुशासित, परिश्रमी संपादक और प्रशिक्षक हैं । पत्रकारिता में उन्हीं के प्रशिक्षण की बदौलत आज मैं हिन्दी चेतना का संपादन बहुत सहजता तथा सरलता से कर लेती हूँ और इस राह में आईं चुनौतियों को छोटा करके देखना भी उन्हीं से सीखा है । साक्षात्कार विधा से श्री विजय चोपड़ा जी ने ही मुझे जोड़ा है और यह विधा मेरे साथ हो ली और मैं इसके साथ वर्षों से चल रही हूँ । कविता, कहानी, उपन्यास लिखने के साथ-साथ मैं कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए साक्षात्कार भी करती हूँ ।
साक्षात्कारों की पुस्तक ’वैश्विक रचनाकार : कुछ मूलभूत जिज्ञासाएँ’ का बीज गर्भनाल पत्रिका के मेरे स्तम्भ ’बातचीत’ के समय ही पड़ गया था । गर्भनाल पत्रिका में मेरा स्तम्भ तकरीबन चार वर्ष तक चला । उस स्तम्भ के लिए मैंने विदेशों के रचनाकारों से बातचीत की थी । यह वार्तालाप फ़ोन, ऑन लाइन और स्काइप आदि आधुनिक सम्पर्क साधनों से होता था । देशों की दूरी और स्वयं अमेरिका का विशाल भौगोलिक विस्तार आमने-सामने बैठकर लिए गए साक्षात्कारों के लिए अवरोध था । अत: साक्षात्कार लेने के कई तरीकों में से आधुनिक तकनीक के इस तरीके को चुना गया । गर्भनाल पत्रिका का बातचीत स्तम्भ बहुत लोकप्रिय हुआ । इन साक्षात्कारों को पुस्तक के रूप में लाने का जब मेरा मन बन गया तो कुछ चुनौतियों और शंकाएँ सामने आ खड़ी हुईं, जो स्वाभाविक थीं क्योंकि किताब साक्षात्कारों की थी । गर्भनाल पत्रिका के लिए विश्व के रचनाकारों को एक फार्मेट में प्रश्र पूछे जाते थे और कई प्रश्न सबके लिए साझे थे । पत्रिका का उद्देश्य उन जिज्ञासाओं को शांत करना था; जो विश्व के साहित्यकारों को लेकर अक्सर पाठकों और आलोचकों के मन में रहती हैं । पत्रिका मासिक है । हर बार नए साहित्यकार से बातचीत होती थी और सब को पूछे गए कुछ सामान्य प्रश्र पाठकों को चुभते नहीं थे; क्योंकि रचनाकार का और बहुत कुछ नया होता था । पर किताब में एक बारगी पढ्ने पर वे प्रश्र महत्वपूर्ण होते हुए भी पाठक को खल सकते हैं, उसका डर था । वे प्रश्र सम्पादित भी नहीं किये जा सकते थे; क्योंकि वे प्रश्र प्रवासी साहित्य, प्रवासी रचनाकार, स्त्री विमर्श आदि कई मुद्दों पर पूछे गए थे और ऐसे मुद्दों पर सबके विचार लेना जरूरी था । दूसरा साक्षात्कारकर्त्ता के रूप में मुझे कटघरे में खड़ा किया जा सकने की शंका थी कि मुझे साक्षात्कारों का अनुभव नहीं; जो कई साहित्यकारों को एक जैसे प्रश्र पूछे हैं, और मेरे पास प्रश्रों की कमी है या मैं साक्षात्कार देने वाले के बारे में पूरी जानकारी नहीं रखती व मेरे शोध में कमी है । कई तरह के आक्षेप और दोष लग सकने की चिंता भी थी ।
साक्षात्कारों को पुस्तक रूप में लाने के जुनून ने डर और शंकाएँ भीतर से भगा दीं । बहुत विचार-विमर्श के बाद इसी निर्णय पर पहुँची कि कुछ एक जैसे प्रश्र परिचर्चा के रूप में पाठक को भायेंगे और उनके भिन्न-भिन्न उत्तर रोचकता बनाये रखेंगे । कुछ सामान्य प्रश्र तो संवाद शुरू करने के लिए पूछे ही जाते हैं । गर्भनाल पत्रिका में ’बातचीत’ स्तम्भ के लिए सीमित पृष्ठ संख्या थी । पुस्तक के लिए साक्षात्कारों को नया रूप दिया है । फिर से प्रश्नोत्तर का दौर शुरू हुआ । सभी रचनाकारों ने बड़े उत्साह से साथ दिया । मुझे खेद है, कि अमेरिका की इला प्रसाद जी मेरे प्रयासों के बावजूद इस पुस्तक का हिस्सा नहीं बन सकीं और भारत में रह रही अंजना संधीर जी जो तकरीबन चार वर्ष पहले तक अमेरिका में रहती थीं, अपनी व्यस्तताओं की वजह से इस पुस्तक में भाग नहीं ले पाईं । अमेरिका के साहित्यकार श्री वेद प्रकाश ’वटुक’, श्रीमती सुषम बेदी, श्रीमती सुदर्शन प्रियदर्शिनी, श्रीमती अनिल प्रभा कुमार, श्रीमती पुष्पा सक्सेना, डॉ. मृदुल कीर्ति, श्रीमती रेखा मैत्र, श्रीमती देवी नागरानी, श्रीमती शशि पाधा, श्री राकेश खंडेलवाल, श्रीमती अनिता कपूर, कैनेडा और ट्रिनीडाड दोनों जगह रहने वाले प्रो. हरिशंकर आदेश, कैनेडा के श्री श्याम त्रिपाठी, इंग्लैण्ड के श्री तेजेन्द्र शर्मा, श्रीमती उषा राजे सक्सेना, श्रीमती अचला शर्मा, श्रीमती दिव्या माथुर, आबुधाबी के श्री कृष्ण बिहारी, शारजाह की श्रीमती पूर्णिमा वर्मन, डेनमार्क की श्रीमती अर्चना पैन्यूली, नार्वे के श्री सुरेश शुक्ल ’शरद आलोक’, भारत के श्री एस. आर. हरनोट और रामेश्वर काम्बोज ’हिमांशु’ जी की आभारी हूँ जिन्होंने इस पुस्तक को पूरा करने में मुझे भरपूर सहयोग दिया । कंचन सिंह चौहान जी की बेहद शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने बड़ी सुघड़ता से मेरे साक्षात्कारकर्त्ता रूप को पकड़ा और एक साक्षात्कार तैयार कर लिया । अदिति मजूमदार को हृदय की गहराइयों से धन्यवाद देती हूँ जिसने साक्षात्कारों को टाइप करने में मेरी सहायता की । अपने पति डी. ओम जी की तहेदिल से आभारी हूँ उनके सहयोग के बिना यह पुस्तक पूरी नहीं हो सकती थी और शिवना प्रकाशन की भी; जिसने इस पुस्तक को प्रकाशित करने का बीड़ा उठाया । उन सभी साहित्यकारों का हार्दिक आभार; जो इसके दूसरे भाग के लिए सहयोग देने को तैयार हैं और साक्षात्कारों के लिए स्वीकृति भेज चुके हैं ।
साहित्यकारों के उत्तरों से मेरा सहमत होना जरूरी नहीं हाँ साक्षात्कारों के द्वारा वैश्विक रचनाकारों को एक पुस्तक में समेट कर आप तक पहुँचाने का एक छोटा सा प्रयास किया है और आशा करती हूँ कि मेरा यह प्रयास आपको पसंद आएगा । बस दिल से निकली कुछ बातें आप से साझी की हैं ।
आपकी,
सुधा ओम ढींगरा
अनुक्रम
अमेरिका से
वेद प्रकाश ’वटु’ 13
सुषम बेदी 21
सुदर्शन प्रियदर्शिनी 31
अनिल प्रभा कुमार 41
पुष्पा सक्सेना 51
डॉ मृदुल कीर्ति 61
रेखा मैत्र 67
देवी नागरानी 73
शशि पाधा 83
राकेश खंडेलवाल 91
अनिता कपूर 99
कैनेडा से
प्रो. हरिशंकर आदेश 109
श्याम त्रिपाठी 117
ब्रिटेन से
तेजेन्द्र शर्मा 123
उषा राजे सक्सेना 141
अचला शर्मा 149
दिव्या माथुर 157
डेनमार्क से
अर्चना पैन्यूली 165
नार्वे से
सुरेश शुक्ल ’शरद आलोक’ 173
खाड़ी देशों से
कृष्ण बिहारी 181
पूर्णिमा वर्मन 193
भारत से
एस आर हरनोट 201
रामेश्वर काम्बोज 215
सम्पादक का साक्षात्कार
सुधा ओम ढींगरा
साक्षात्कारकर्त्ता: कंचन सिंह चौहान
साक्षात्कार अत्यंत लोकप्रिय और उपयोगी विधा है । पाठक यह अनुभव करता है जैसे वह किसी रचनाकार के सामने बैठकर उससे बातें कर रहा है । उपयोगी इसलिए कि इसमें रचनाकार के ’अंत: साक्ष्य’ मिलते हैं । इन साक्ष्यों से रचना संसार को समझने में मदद मिलती है । विद्वान् आदि विधा के नाम पर कहानी या कविता का नाम लेते रहते हैं । मुझे लगने लगा है कि संवाद ही साहित्य की आदि विधा है । कोई भी प्राणी सबसे पहले अपने अकेलेपन को समाप्त करना चाहता है । गालिब जब कहते हैं- ’रहिये अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो, हमसुखन कोई न हो और हमज़बाँ कोई न हो’ तो उनकी त्रासदी समझी जा सकती है । यह असामान्य मनोदशा है । सामान्य स्थिति यह है कि मनुष्य किसी की बात सुनना चाहता है, किसी से कुछ कहना चाहता है । संवाद सभ्यता और संस्कृति का बीज रूप है । इस संवाद और साक्षात्कार ने न जाने कितने रूप बदले हैं, जाने कितने नामों से स्वयं को व्यक्त किया है । आधुनिक साहित्य में साक्षात्कार को एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । बातचीत, संवाद, आमने सामने या कुछ और नामों से साक्षात्कार पत्र पत्रिकाओं में छपते हैं.. खूब पड़े जाते हैं ।
कुछ पत्रकारों और लेखकों ने साक्षात्कार लेने की कला को एक रचनात्मक हुनर बना लिया है । उन्हें पता है कि किस लेखक से बात करने का सलीका क्या है । संवाद एक सलीका ही तो है । साक्षात्कार का सौन्दर्य है संवादधर्मी होना । .. ऐसी अनेक विशेषताएँ सुधा ओम ढींगरा द्वारा लिये गये साक्षात्कारों में सहज रूप से उपलब्ध हैं । ’वैश्विक रचनाकार: कुछ मूलभूत जिज्ञासाएँ’ में मौजूद साक्षात्कार इस विधा की गरिमा को समृद्ध करते हैं । समर्पित रचनाकार सुधा ओम ढींगरा बातचीत करने में दक्ष हैं । वैसे भी जब वे फोन करती हैं तो अपनी मधुर आवाज़ से वातावरण सरस बना देती हैं । जीवन्तता साक्षात्कार लेने वाले का सबसे बड़ा गुण है । बातचीत को किसी फाइल की तरह निपटा देने से मामला बनता नहीं । सुधा जी को इस विधा में दिलचस्पी है । उन्होंने अनुभव और अध्ययन से इसे विकसित किया है । वे ऐसी लेखक हैं, जिन्हें टेक्नॉलॉजी का महत्त्व पता है । बातचीत करने के लिये आमने सामने होने के अतिरिक्त उन्होंने फोन, ऑनलाइन और स्काइप का उपयोग किया है । बल्कि आमना-सामना अत्यल्प है । इससे कई बार औपचारिक या किताबी होने का संकट रहता है जो स्वाभाविक है ।... लेकिन यह देखकर प्रसन्नता होती है कि सारे साक्षात्कार जीवन्त और दिलचस्प हैं ।
अमेरिका, कैनेडा, इंग्लैण्ड, आबूधाबी, शारजाह, डेनमार्क और नार्वे के साहित्यकारों से सुधा जी के प्रश्न सतर्क हैं । साहित्यकारों ने भी सटीक उत्तर दिये हैं । यह पुस्तक पाठकों की ज्ञानवृद्धि के साथ उनकी संवेदना का दायरा भी व्यापक करेगी । वैश्विक रचनाशीलता की मानसिकता को यहाँ लक्षित किया जा सकता है । ऐसी पुस्तकें हिन्दी में बहुत कम हैं । शायद न के बराबर । विश्व के अनेक देशों में सक्रिय हिन्दी रचनाकारों के विचार पाठकों तक पहुँचाने के लिए हमें सुधा ओम ढींगरा को धन्यवाद भी देना चाहिए । हिन्दी में कुछ विशेषज्ञ रहे हैं जो साक्षात्कार को रचना बना देते हैं । सुधा जी को देखकर.... उनके काम को पढ़कर और इस विधा के विषय में उनके विचार जानकर उनकी विशेषज्ञता की सराहना की जानी चाहिए ।
इस पुस्तक के लिए श्रेष्ठ रचनाकार और संवेदनशील संवादिया सुधा ओम ढींगरा को बहुत-बहुत बनाई । शुभकामनाएँ । यह भरोसा है कि वे अपनी इस यात्रा को अनुद्घाटित दिशाओं में ले जाएँगी । अनुज पंकज सुबीर का कृतज्ञ हूँ कि उन्होंने इस पुस्तक को पढ्ने और इस पर कुछ लिखने का अवसर दिया । ’वैश्विक रचनाकार : कुछ मूलभूत जिज्ञासाएँ’ को पढ़कर प्रवासी लेखन कह कर अनेक लेखकों को हाशिए पर ढकेलने की प्रवृत्ति भी कम होगी ।
-सुशील सिद्धार्थ
सम्पादक
राजकमल प्रकाशन
१ बी, नेताजी सुभाष मार्ग
दरियागंज - 2
मोबाड़ल ०९८६८०७६१८२
ईमेल : Sushilsiddharth@gmail.com
कुछ दिल ने कहा
साक्षात्कार विधा से मेरा नाता बहुत पुराना है । पत्रकारिता जगत् में प्रवेश करते ही मेरा परिचय इस विधा से हुआ । दैनिक पंजाब केसरी के मुख्य संपादक श्री विजय चोपड़ा जी ने पहला कार्यभार मुझे पिंगला घर के संचालक का इंटरव्यू लेना और फिर पिंगला घर पर फीचर लिखना, सम्भाला था । एक अनाड़ी किशोरी को पत्रकारिता के समुद्र में अनुभवों के गोते लगाने के लिए उतार दिया था और स्वयं प्रोत्साहन तथा संबल का छाता तान कर बारिश, धूप और छाया से बचाने के लिए साथ खड़े रहे । वे एक बहुत अनुशासित, परिश्रमी संपादक और प्रशिक्षक हैं । पत्रकारिता में उन्हीं के प्रशिक्षण की बदौलत आज मैं हिन्दी चेतना का संपादन बहुत सहजता तथा सरलता से कर लेती हूँ और इस राह में आईं चुनौतियों को छोटा करके देखना भी उन्हीं से सीखा है । साक्षात्कार विधा से श्री विजय चोपड़ा जी ने ही मुझे जोड़ा है और यह विधा मेरे साथ हो ली और मैं इसके साथ वर्षों से चल रही हूँ । कविता, कहानी, उपन्यास लिखने के साथ-साथ मैं कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए साक्षात्कार भी करती हूँ ।
साक्षात्कारों की पुस्तक ’वैश्विक रचनाकार : कुछ मूलभूत जिज्ञासाएँ’ का बीज गर्भनाल पत्रिका के मेरे स्तम्भ ’बातचीत’ के समय ही पड़ गया था । गर्भनाल पत्रिका में मेरा स्तम्भ तकरीबन चार वर्ष तक चला । उस स्तम्भ के लिए मैंने विदेशों के रचनाकारों से बातचीत की थी । यह वार्तालाप फ़ोन, ऑन लाइन और स्काइप आदि आधुनिक सम्पर्क साधनों से होता था । देशों की दूरी और स्वयं अमेरिका का विशाल भौगोलिक विस्तार आमने-सामने बैठकर लिए गए साक्षात्कारों के लिए अवरोध था । अत: साक्षात्कार लेने के कई तरीकों में से आधुनिक तकनीक के इस तरीके को चुना गया । गर्भनाल पत्रिका का बातचीत स्तम्भ बहुत लोकप्रिय हुआ । इन साक्षात्कारों को पुस्तक के रूप में लाने का जब मेरा मन बन गया तो कुछ चुनौतियों और शंकाएँ सामने आ खड़ी हुईं, जो स्वाभाविक थीं क्योंकि किताब साक्षात्कारों की थी । गर्भनाल पत्रिका के लिए विश्व के रचनाकारों को एक फार्मेट में प्रश्र पूछे जाते थे और कई प्रश्न सबके लिए साझे थे । पत्रिका का उद्देश्य उन जिज्ञासाओं को शांत करना था; जो विश्व के साहित्यकारों को लेकर अक्सर पाठकों और आलोचकों के मन में रहती हैं । पत्रिका मासिक है । हर बार नए साहित्यकार से बातचीत होती थी और सब को पूछे गए कुछ सामान्य प्रश्र पाठकों को चुभते नहीं थे; क्योंकि रचनाकार का और बहुत कुछ नया होता था । पर किताब में एक बारगी पढ्ने पर वे प्रश्र महत्वपूर्ण होते हुए भी पाठक को खल सकते हैं, उसका डर था । वे प्रश्र सम्पादित भी नहीं किये जा सकते थे; क्योंकि वे प्रश्र प्रवासी साहित्य, प्रवासी रचनाकार, स्त्री विमर्श आदि कई मुद्दों पर पूछे गए थे और ऐसे मुद्दों पर सबके विचार लेना जरूरी था । दूसरा साक्षात्कारकर्त्ता के रूप में मुझे कटघरे में खड़ा किया जा सकने की शंका थी कि मुझे साक्षात्कारों का अनुभव नहीं; जो कई साहित्यकारों को एक जैसे प्रश्र पूछे हैं, और मेरे पास प्रश्रों की कमी है या मैं साक्षात्कार देने वाले के बारे में पूरी जानकारी नहीं रखती व मेरे शोध में कमी है । कई तरह के आक्षेप और दोष लग सकने की चिंता भी थी ।
साक्षात्कारों को पुस्तक रूप में लाने के जुनून ने डर और शंकाएँ भीतर से भगा दीं । बहुत विचार-विमर्श के बाद इसी निर्णय पर पहुँची कि कुछ एक जैसे प्रश्र परिचर्चा के रूप में पाठक को भायेंगे और उनके भिन्न-भिन्न उत्तर रोचकता बनाये रखेंगे । कुछ सामान्य प्रश्र तो संवाद शुरू करने के लिए पूछे ही जाते हैं । गर्भनाल पत्रिका में ’बातचीत’ स्तम्भ के लिए सीमित पृष्ठ संख्या थी । पुस्तक के लिए साक्षात्कारों को नया रूप दिया है । फिर से प्रश्नोत्तर का दौर शुरू हुआ । सभी रचनाकारों ने बड़े उत्साह से साथ दिया । मुझे खेद है, कि अमेरिका की इला प्रसाद जी मेरे प्रयासों के बावजूद इस पुस्तक का हिस्सा नहीं बन सकीं और भारत में रह रही अंजना संधीर जी जो तकरीबन चार वर्ष पहले तक अमेरिका में रहती थीं, अपनी व्यस्तताओं की वजह से इस पुस्तक में भाग नहीं ले पाईं । अमेरिका के साहित्यकार श्री वेद प्रकाश ’वटुक’, श्रीमती सुषम बेदी, श्रीमती सुदर्शन प्रियदर्शिनी, श्रीमती अनिल प्रभा कुमार, श्रीमती पुष्पा सक्सेना, डॉ. मृदुल कीर्ति, श्रीमती रेखा मैत्र, श्रीमती देवी नागरानी, श्रीमती शशि पाधा, श्री राकेश खंडेलवाल, श्रीमती अनिता कपूर, कैनेडा और ट्रिनीडाड दोनों जगह रहने वाले प्रो. हरिशंकर आदेश, कैनेडा के श्री श्याम त्रिपाठी, इंग्लैण्ड के श्री तेजेन्द्र शर्मा, श्रीमती उषा राजे सक्सेना, श्रीमती अचला शर्मा, श्रीमती दिव्या माथुर, आबुधाबी के श्री कृष्ण बिहारी, शारजाह की श्रीमती पूर्णिमा वर्मन, डेनमार्क की श्रीमती अर्चना पैन्यूली, नार्वे के श्री सुरेश शुक्ल ’शरद आलोक’, भारत के श्री एस. आर. हरनोट और रामेश्वर काम्बोज ’हिमांशु’ जी की आभारी हूँ जिन्होंने इस पुस्तक को पूरा करने में मुझे भरपूर सहयोग दिया । कंचन सिंह चौहान जी की बेहद शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने बड़ी सुघड़ता से मेरे साक्षात्कारकर्त्ता रूप को पकड़ा और एक साक्षात्कार तैयार कर लिया । अदिति मजूमदार को हृदय की गहराइयों से धन्यवाद देती हूँ जिसने साक्षात्कारों को टाइप करने में मेरी सहायता की । अपने पति डी. ओम जी की तहेदिल से आभारी हूँ उनके सहयोग के बिना यह पुस्तक पूरी नहीं हो सकती थी और शिवना प्रकाशन की भी; जिसने इस पुस्तक को प्रकाशित करने का बीड़ा उठाया । उन सभी साहित्यकारों का हार्दिक आभार; जो इसके दूसरे भाग के लिए सहयोग देने को तैयार हैं और साक्षात्कारों के लिए स्वीकृति भेज चुके हैं ।
साहित्यकारों के उत्तरों से मेरा सहमत होना जरूरी नहीं हाँ साक्षात्कारों के द्वारा वैश्विक रचनाकारों को एक पुस्तक में समेट कर आप तक पहुँचाने का एक छोटा सा प्रयास किया है और आशा करती हूँ कि मेरा यह प्रयास आपको पसंद आएगा । बस दिल से निकली कुछ बातें आप से साझी की हैं ।
आपकी,
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अनुक्रम
अमेरिका से
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